Monday, 22 January 2024

Parakram Diwas:23 जनवरी को पराक्रम दिवस क्यों मनाते हैं ...

 भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस का नाता पराक्रम दिवस से है। हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है। यह दिन साहस को सलाम करने का है। पराक्रम दिवस के मौके पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। बच्चों को स्कूल-काॅलेज में इस दिन का महत्व बताया जाता है और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की याद को ताजा किया जाता है। पराक्रम दिवस मनाने की खास वजह है। इस दिन का संबंध सुभाष चंद्र बोस है। इस दिन सुभाष चंद्र बोस को नमन किया जाता है और उनके योगदान को याद करते हैं। 


सुभाष चंद्र बोस ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए अहम भूमिका निभाई थी। उनका पूरा जीवन ही साहस व पराक्रम की कहानी है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने नारा दिया था, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'। इस नारे ने भारतीयों के दिलों में आजादी की मांग को लेकर जल रही आग को और अधिक तेज कर दिया था। पराक्रम दिवस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाता और 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाने की वजह जानिए।



पराक्रम दिवस का इतिहास

प्रतिवर्ष 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाते हैं। इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 2021 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। भारत सरकार की घोषणा के बाद हर साल पराक्रम दिवस 23 जनवरी को मनाया जाने लगा।

23 जनवरी को ही क्यों मनाते हैं पराक्रम दिवस

भारत सरकार ने यह दिन सुभाष चंद्र बोस के नाम समर्पित किया है। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी को हुआ था। उनकी जयंती के मौके पर हर साल पराक्रम दिवस मनाकर नेता जी को याद किया जाता है और आजादी के लिए उनके योगदान के लिए नमन करते हैं।
Parakram Diwas History 23 Janaury and Subhash Chandra Bose Jayanti 2024
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पराक्रम दिवस के रूप में ही क्यों मनाते हैं बोस की जंयती?

सुभाष चंद्र बोस की जयंती पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की भी वजह है। बोस का संपूर्ण जीवन हर युवा और भारतीय के लिए आदर्श है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए बोस इंग्लैंड पढ़ने गए लेकिन देश की आजादी के लिए प्रशासनिक सेवा का परित्याग कर स्वदेश लौट आए। यहां उन्होंने आजाद भारत की मांग करते हुए आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज का गठन किया। इतना ही नहीं उन्होंने खुद का आजाद हिंद बैंक स्थापित किया, जिसे 10 देशों का समर्थन मिला। उन्होंने भारत की आजादी की जंग विदेशों तक पहुंचा दी।

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