बहुभाषिकता समस्या नहीं, एक समाधान है
भारत में बहुभाषिकता को एक संसाधन के रूप में देखने की बजाय एक समस्या की तरह देखा जाता है। इसके लिए हम उन स्कूलों का उदाहरण ले सकते हैं जहां क्लासरूम में एक बच्चे को अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करने से रोका जाता है।
भाषा के कालांश में बहुभाषिकता को एक समस्या के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कक्षा में अलग-अलग भाषाओं के इस्तेमाल से बच्चों को उलझन होती है। जबकि स्थिति इसके ठीक विपरीत होती है।
कक्षा में बहुभाषी माहौल के कारण हर बच्चा अपनी बात रखने में सहज महसूस करता है। ऐसा माहौल सभी बच्चों को दूसरे की भाषा और विचारों का सम्मान करना सिखाती है।
हम सब मूलतः बहुभाषी हैं
उदाहरण के तौर पर अगर किसी बच्चे के घर में अवधी या भोजपुरी या फिर कोई आदिवासी भाषा मसलन गरासिया, बागड़ी इत्यादि बोली जाती है तो बच्चा अपनी बात अपने घर की भाषा (होम लैंग्वेज) में बड़ी आसानी से कह पायेगी। उसे अपनी बात कहने के लिए शब्दों की तलाश नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि उसके पास अपनी बात को अभिव्यक्ति करने के लिए पर्याप्त शब्द भंडार पहले से होता है।
एक भाषा वैज्ञानिक ने बातचीत के दौरान बताया कि हम सभी मूलतः बहुभाषी हैं। किसी एक भाषा से हमारा काम चल ही नहीं सकता है। हम स्कूल में एक भाषा बोलते हैं, घर पर दूसरी भाषा बोलते हैं, दोस्तों के साथ किसी अन्य भाषा में संवाद करते हैं। इसके अतिरिक्त बहुत सी अन्य भाषाओं में हम बोलते कम हैं। मगर उसमें लिखने-पढ़ने का काम करते हैं जैसे अंग्रेजी। बहुत से हिंदी-भाषी राज्यों में अंग्रेजी में संवाद करने की जरूरत आमतौर पर नहीं पड़ती। मगर वहां के लोग अंग्रेजी के अखबार, पत्रिकाएं, उपन्यास और कहानियां इत्यादि पढ़ते हैं।
एक समाधान है बहुभाषिकता
उपरोक्त नजरिये से देखें तो हम कह सकते हैं कि बहुभाषिकता एक समाधान है। इससे हम किसी मुद्दे पर अलग-अलग दृष्टिकोण से विचार कर पाते हैं। एक ऐसे समाधान तक पहुंचने का प्रयास कर पाते हैं जो अन्य लोगों के प्रति भी समान रूप से संवेदनशील होता है। किसी एक भाषा को सभी लोगों के ऊपर थोपने की कोशिशों का इसी कारण से विरोध होता है क्योंकि जो भाषा किसी के लिए आसान होती है। वही अन्य लोगों के लिए मुश्किल हो सकती है, यह एक छोटी सी बात है। मगर हम इसे समझने की कोशिश नहीं करते।
बहुत से स्कूलों में बच्चों के हिंदी बोलने पर पैरेंट्स से शिकायत की जाती है। फाइन लगाया जाता है। इसी तरीके से अन्य भाषाओं के साथ भी भेदभाव होता है। जिसका व्यावहारिक समाधान तलाशने की दिशा में प्रयास होना चाहिए। बहुभाषिकता इस समस्या का एक समाधान है। क्योंकि भाषा का मकसद केवल सामने वाली की जरूरत के अनुसार खुद को ढालना नहीं है। भाषा अपने अनुभवों पर विचार करने, भविष्य के फैसले लेने और लोगों से विचार-विमर्श करने का एक सशक्त जरिया है। बहुभाषिकता इस प्रक्रिया को ज्यादा सुगम और विविध बनाती है। इसे एक व्यापकता देती है जो बाकी लोगों को भी संवाद की प्रक्रिया में भागीदार बनाने की हिमायत करती है, उनका विरोध नहीं करती।
Source:https://educationmirror.org/2016/04/18/benefits-of-multilingualism-in-education/
No comments:
Post a Comment