Sunday 18 December 2016

दिवास्वपन के नोट्स …(गिजुभाई बधेका)

दिवास्वपन के नोट्स …(गिजुभाई बधेका)

गिजुभाई की किताब दिवास्वपन किसी अध्यापक की डायरी सरीखी है. जो एक अध्यापक की जिद को सामने लाती है जो शिक्षा में बदलाव के स्वपन को साकार करना चाहता है. लोगों को बताना चाहता है कि शिक्षा में बदलाव संभव है, लेकिन इसके लिए अपने ही विचारों और मान्यताओं को चुनौती देना पड़ेगा. ऐसा करना हमें बाकी लोगों के साथ संवाद और विचारों को साझा करने की दृष्टि से काफी उपयोगी होगा. इस पुस्तक के महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं….
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भारत में आज भी शिक्षा को  बाल केंद्रित बनाने के प्रयास जारी हैं. इस दिशा में गिजुभाई ने सालों पहले प्रयोग करने का काम किया. गिजुभाई पेशे से वकील थे. गाँधी जी की तरह कुछ साल दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहे. वहाँ से वापस आकर फिर से वकालत शुरू की. जब वकालत से मन ऊब गया तो 1910-15 के दौरान प्रख्यात साहित्यकार मारिया मांटेसरी का गहन अध्ययन किया.
इसके बाद भावनगर के बाल विद्या मंदिर में गिजूभाई ने शिक्षा के केंद्र में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। वे बच्चों के प्रति अपने प्रेम का व्यवहार करते थे. उनकी ख़ुशी का ध्यान रखते थे. उनके समकालीन शिक्षकों को लगता था कि वो क्या कर रहे हैं? आइए दिवास्वपन के प्रमुख बिंदुओं पर एक नज़र डालते हैं.
1. पढ़ाने का मकसद क्या है (जिज्ञासा को बढ़ावा देना या परीक्षा पास करने के लिए तैयार करना)।
2. बच्चो को स्वतंत्रता का माहौल देने और उन्हें स्वर्निभर बनाने पर गांधी, टैगोर और गिजूभाई का जोर है
3.गिजूभाई बधे परंपरागत तरीके और किताबों में सिमटने से परे बच्चों को देखते हैं। ताकि बच्चा अपने स्थानीय परिवेश से न कटे।
4.कहानी सुनाकर बच्चों को अपनी ओर आकर्षित किया
5.इसके माध्यम से बातचीत शुरू की ताकि उनसे परिचय हो सके
6.बैठने के नियम बनाने शुरू किए
7.बच्चों की रुचि जागृत होने लगी और वे कहना मानने लगे
8. साफ-सफाई पहली जरूरत है। हेड-मास्टर का कहना था कि यह घर वालों का काम है। इसमें खुद को क्यों फंसा रहे हो। गिजू भाई नें जवाब दिया कि बच्चे खुद इसकी जिम्मेदारी ले रहे हैं।
9. उन्होनें बच्चों के टोपी  पहनने पर ऐतराज जताया कि गंदी पगड़ी क्यों पहनते हैं। कल से मत पहन कर आना। मैं भी ऐसा ही करंगा। हेड मास्टर नें कहा कि सोशल कस्टम से छेड़-छाड़ सही नहीं है। शिक्षा अधिकारी से अनुमति की बात कही। शिक्षा अधिकारी से बात करने पर उन्होनें जवाब दिया कि  स्कूल की चार-दीवारी तक ही सीमित रहो। वहीं रहकर पढ़ाई को बेहतर बनाने का अपना प्रयोग जारी रखो। उससे आगे मत जाओ।
 
                                                                        पुस्तक का सारांश
 
अगर संक्षेप में अपनी बात रखूं तो सबसे पहली बात (जो इसकी प्रस्तावना से निकल कर आती है) कि यह किताब शिक्षा में नए प्रयोगों की शुरुआत और यथास्थिति को तोड़ने के सफ़र की कहानी कहती है। यह बच्चों की जिज्ञासा और उनके आस-पास के परिवेश से उनको जोड़कर देखती है। कहानी के माध्यम से भाषा सिखाने और बच्चों से रिश्ता बनाने को एक सहज और सक्रिय प्रक्रिया के रूप में देखती है, जिसमें बच्चों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है।
लेखक का मानना है कि कहानी और खेल को मैं आधी शिक्षा के रूप में देखता हूं। क्योंकि इससे बच्चे को बेहतर जीवन व्यवहार सीखने और सोचने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। बच्चे पढ़ाई की तरफ रुख करते हैं। यह बात भी हमें दिखाई पड़ती है। नए काम की शुरूआत में गलतियों की संभावना से हम इंकार नहीं कर सकते। लेकिन हमें गलतियों से तेजी से सीखना पड़ता है क्योंकि लोग हम पर सवालों की बौछार करने को तैयार बैठे होते हैं। जो भी हमारे प्रभाव का दायरा तय हो हमें वहां से चीजों को बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए।
गिजुभाई बधेका समुदाय व माता-पिता के सहयोग को बच्चे के विकास में सहयोग के लिए जरूरी मानते हैं। वे शिक्षा को यथास्थिति को बदलने का माध्यम मानते हैं। वे मानते हैं कि भले इसमें वक्त लग रहा हो लेकिन हमें बहुत धैर्य के साथ अपना काम करते रहना चाहिए। पहले दिन शांति के अभ्यास का प्रयास, बच्चों की बेचैनी देखकर उनको छुट्टी दे देना। दूसरे दिन कहानी के माध्यम से उनको अपनी बात सुनने के लिए तैयार करना। कहानी बीच में रोककर बच्चों को बातचीत करने के लिए राजी करना। कहानी के माध्यम से क्लॉस में नियम बनाने की परंपरा शुरू करना। बच्चों से उनकी सहमति लेना आदि बातें गिजूभाई की गहरी समझ की तरफ इशारा करती हैं। वे पूरी प्रक्रिया को गौर से देखते हैं कि कहां चूक हो गई और उसे सुधार करते हैं।
अगर शिक्षक के नजरिए से बात करें तो गिजुभाई अधिकारियों के दबाव को समझते हैं। कोर्स को पूरा करने में शुरूआती स्तर पर हो रही देरी को भी स्वीकार करते है। समुदाय को समझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन भाषण देना सही नही है, यह बात भी उन्हे अंत में पता चलती है। बच्चों के व्यवहार को वे काफी तार्किक ढंग से समझते हुए शांत रहते हैं। एक शिक्षक के बतौर यह सारे अनुभव हमें मानसिक स्तर पर मजबूत बनाते हैं और वर्तमान चुनौतियों का सामना करने का हौसला भी देते हैं.

1 comment:

  1. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। educationmirror.org की इस पोस्ट को यहां स्थान देने के लिए।

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