पाठ्यपुस्तकों में ‘भारत की खोज’ नहीं, ‘नेहरू की तलाश’
शिक्षा के नाम पर होने वाली राजनीति के गहरे निहितार्थ हैं। हर राजनीतिक दल की हसरत होती है कि वह ऐसे लोगों को तैयार करे, जो उनकी विचारधारा के प्रभाव में आजीवन बंधे रहें। इस मामले में कांग्रेस हो या बीजेपी। दोनों एक जैसे हैं। सत्ता में बदलाव के साथ पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में बदलाव का यह खेल पुराना है। मगर जिस हड़बड़ी में इस प्रक्रिया को पूरा किया गया है, उसे लेकर विशेषज्ञ और शिक्षाविद् दोनों सवाल उठा रहे हैं।
पहली नज़र में किताबों में बदलाव का कार्यक्रम ख़ासकर हिंदी के संदर्भ में तो कॉपी-पेस्ट का मामला लगता है। बहुत सारी चीज़ों को जगह-जगह से बिना सोचे-समझे उठा लिया गया है। इस काम को अगर उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से राय लेकर किया जाता तो शायद इस बदलाव को ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता था। मगर अभी तो लोगों की नज़रे इतिहास में बदलाव से उपजे विवाद पर टिकी हुई हैं।
‘भारत की खोज’
आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम हटा तो शोर हो रहा है कि पाठ्यक्रम बदल रहा है। अगर ऐसा विवाद नहीं होता तो शायद लोगों को पता भी नहीं चलता कि राजस्थान में पाठ्यपुस्तकें बदल रही हैं। इस बदलाव से पहले आठवीं कक्षा में ‘भारत की खोज’ नाम से हिंदी विषय की पूरक पुस्तक चल रही थी।
इस किताब के कवर पेज़ पर नेहरू की कोई तस्वीर नहीं है। मगर भीतर के पन्नों में नेहरू का नाम पहले पाठ से लेकर किताब खत्म होने तक बार-बार आता है। पूरे प्रभाव के साथ आता है।
नेहरू की ‘तलाश’
पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में होने वाले नये बदलाव में ‘भारत की खोज’ किताब को भी दरकिनार कर दिया जायेगा। आठवीं की पाठ्यपुस्तक से नेहरू का नाम हटाने वाले विवाद पर राजस्थान के शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने मीडिया से कहा, “नेहरू का नाम हटाया नहीं गया है पेज – 91 और पेज- 177 पर उनके नाम का जिक्र हैं।” पेज- 91 पर नेहरू का जिक्र एक पंक्ति में आता है।
एक साल पहले नेहरू के जीवन पर केंद्रित पूरी एक किताब थी, मगर उनका नाम खोजना पड़ रहा है। जाहिर सी बात है कि ऐसा बदलाव सोच-समझकर किया गया है। दूसरी कक्षा में हिंदी की किताब में पृष्ठ संख्या 43 पर कुछ महापुरुषों के चित्र देकर उनके नाम पहचानने और लिखने वाला सवाल है।
इसमें भी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का चित्र नहीं है। इसमें महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और नेता जी सुभाषचंद्र बोस की तस्वीर है।
इस नये विवाद को ‘नेहरू की खोज’ का नाम दिया जा सकता है। हिंदी की किताबों के बहाने इतिहास पढ़ाने का यह तरीका काफी रोचक है। मगर इसे लेकर आने वाले दिनों में विवाद और तेज़ होगा, इसमें दो राय नहीं है।
No comments:
Post a Comment