Sunday, 18 December 2016

अब दूसरा क्या करने का?

अब दूसरा क्या करने का?

पार्थ से यह बातचीत यशस्वी ने की है।
बच्चों से बातचीत क्यों जरूरी है? इस बारे में हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं। बच्चों से बातचीत कैसे करें, इस सवाल पर भी हमने बात की है। इस पोस्ट में पढ़िए एक लाइव बातचीत जो यशस्वी ने एजुकेशन मिरर के साथ साझा की है।
तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला पार्थ इतना बोलता हैं कि बस उसकी मीठी आवाज़ को सुनते रहने का मन करता है। फटाफट एक काम खत्म करके अगला काम करने को तैयार।
हमेशा ये लिखूं, वो लिखूं। ये काम ख़त्म हो गया। अब दूसरा क्या करने का …..? उसकी मम्मी स्कूल मैं तब तक रहती हैं जब तक की छुट्टी नहीं  होती। मगर वो उनके पास तभी जाता हैं जब रेसेस की घंटी बजे या फिर उसे बुखार आ जाता है।

अपने समय की परवाह

उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की दूसरे क्या कर रहे हैं। मगर उसका समय ख़राब नहीं होना चाहिए, उसे इस बात का हमेशा ख्याल रहता है। इसीलिए तो वह हर समय जल्दी में रहता हैं ।
जब जिस विषय की घंटी बजती हैं उसकी कॉपी -किताब खुल जाती हैं। उसे लिखने और पढने का खूब शौक हैं। जब वो काम कर रहा होता हैं तो उसके पास किसी के लिए भी वक़्त नहीं  होता । उसे चित्र बनाना थोड़ा भाता है मगर जिस चीज़ के बारे पार्थ को पता होता है, उस पर वह घंटों बातें कर सकता है । कुछ इस तरह.
पार्थ —                   आप दो शब्दों  वाले नाम बोलो मैं लिखूंगा (क्योकि अभी -अभी क्लास में यही सिखा है
                             उसने)
थोड़े शब्दों को बोलने के बाद मैंने उससे कहा की अब तुम खुद से लिखो  और कुछ नाम  लिखने के बाद
उसने लिखा -लक्जरी  फिर हमारी थोड़ी बातें  हुई उसके लक्जरी के बारे में
मैं—                                                                ये क्या लिखा हैं ?
पार्थ —                                                          लक्जरी
मैं —                                                              किसका नाम है ये
पार्थ ( हाथ सर पर रखकर ) —                      लक्जरी ..नही जानती । वो जो बड़ी सी होती
हैं जिससे बहुत दूर  गए थे  हम  ,भावनगर ,जामनगर
मैं —                                                                 अच्छा ……….कैसी  होती हैं
पार्थ ( कुछ देर तक लिखता रहा )–                  उसमें सीट होती हैं
मैं —                                                              क्यों होती हैं
पार्थ —                                                         मानस बैठते हैं उसपे ,गोल -गोल पंखा भी होता हैं
मैं —                                                              और क्या -क्या होता हैं
पार्थ —                                                          और खिड़की होती हैं चौरस ,कांच की बाहर देखने को
होती हैं तो ……
और फिर वह दूसरे शब्दों को लिखने के लिए आगे बढ़ गया।
yashswi(लेखक परिचयः यशस्वी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए किया। इसके बाद गांधी फेलोशिप में दो वर्षों तक गुजरात के सरकारी स्कूलों में प्रधानाध्यापक नेतृत्व विकास के लिए काम किया।
यशस्वी को स्कूली बच्चों से बात करना और उनके सपनों व कल्पनाओं की दुनिया को जानना बेहद पसंद है। उनकी यह कविता एक छोटी बच्ची के फ्राक के धानी रंग से प्रेरित है।)

No comments:

Post a Comment

Featured post

Career & Courses as per Department of School Education & Literacy, Government of India

  Career & Courses EDUCATION SCHOOL TEACHER ASSISTANT PROFESSOR ACADEMIC RESEARCHER SPECIAL EDUCATOR PHYSICAL EDUCATOR PRE SCHOOL EDUCAT...