शिक्षा में गुणवत्ता के मायने क्या हैं?

इसके मुताबिक बाल-केंद्रित तरीके से होने वाला शिक्षण ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है जिसमें अध्यापक एक सुगमकर्ता की भूमिका में होगा। स्कूल आने वाला बच्चा स्वस्थ होगा। सुपोषित होगा। कक्षा में भागीदारी और सीखने के लिए उसकी पूरी तैयारी होगी। इसके साथ ही बच्चे का परिवार और समुदाय शिक्षा जारी रखने में उसका सहयोग करेंगे। यानि वे बच्चे को स्कूल से ड्रॉप आउट नहीं होने देंगे।
बुनियादी कौशलों का विकास
स्कूल का माहौल बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल और सुरक्षित होगा। वहां जेंडर के आधार पर किसी बच्चे के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। यानि लड़के-लड़की को समान नज़रिये से देखा जायेगा। इसके साथ ही संसाधनों व जरूरी सुविधाओं की प्रचुरता को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का एक पैमाना माना गया है।
शैक्षिक पहलू को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पर्याय न मानकर एक आयाम माना गया है। जिसमें पाठ्यचर्या के अनुसार बनी अच्छी पाठ्य सामग्री से भाषा और अंकगणित के बुनियादी कौशलों का विकास करने की बात कही गई है। इसके साथ-साथ जीवन कौशलों के विकास को भी विशेष महत्व दिया गया है। ताकि बच्चा अपने अधिगम का इस्तेमाल सामान्य जीवन में कर सके।
बेहतर प्रबंधन
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का एक अहम पहलू शिक्षक प्रशिक्षण भी है। इसकी मान्यता है कि स्कूलों में बाल केंद्रित शिक्षण के तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। स्कूल और कक्षाओं का बेहतर प्रबंधन होना चाहिए। बच्चों के अधिगम (सीखने) को प्रोत्साहित करने के लिए कौशल आधारित आकलन का इस्तेमाल किया जाय ताकि अन्य बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव को कम किया जा सके। कौशल आधारित आकलन का संदर्भ सतत एवम व्यापक आकलन से लिया जा सकता है।
राजस्थान के सरकारी स्कूलों में पहली से पांचवी कक्षा तक सतत एवम व्यापक आकलन का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना ही है। ताकि एक बच्चे का बहुआयामी विकास सुनिश्चित हो सके। आखिर में कह सकते हैं कि शिक्षा की व्यवस्था जटिल है और इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ हैं।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अन्य नज़रिये से समझने की कोशिश आने वाली पोस्ट में भी जारी रहेगी।
Source:https://educationmirror.org/2016/03/25/what-does-quality-education-means-in-a-complex-system/
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