पुस्तक चर्चाः सामुदायिक रेडियो और मनरेगा की पड़ताल करती किताबें
इस साल आशीष सिंह की दो किताबें आयीं हैं. पहली किताब महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की ज़मीनी हकीकत पर दृष्टि डालती है.
किताब का नाम है ‘The Actual Cost of Cast: MGNREGA on the ground’ मनरेगा एक महत्वाकांक्षी योजना है जो गरीब बेरोजगारों को साल में सौ दिन का रोजगार सुनिश्चित करती है.
पैसा बराबरी दिलाने में सक्षम है?
आशीष ने अपनी किताब में यह समझने की कोशिश की है कि मनरेगा से मिलने वाला रोज़गार आमदनी तो उपलब्ध करता है लेकिन क्या यह समाज के ऊंच-नीच के विभाजन पर भी कोई असर डालता है.
मसलन, क्या पैसा समाज में किसी तरह की बराबरी दिला पाने में सक्षम है? आत्मसम्मान के साथ रोजगार समाज में सामंजस्य बैठाने के लिए जरुरी है, लेकिन हमारे समाज की संरंचना इस मामले में बहुत कठोर है और किसी भी तरह का सामाजिक बदलाव लंबा प्रयास मांगता है.
सामुदायिक रेडियो
आशीष की दूसरी किताब ‘Self Sustainability Of Community Radio: Stories from India’ भारत में सामुदायिक रेडियो की स्थिति पर नज़र डालती है. सामुदायिक रेडियो का कॉन्सेप्ट भारत में नया नहीं है. भारत जैसे देश में जहाँ चर्चा और विमर्श मंदिर-चौपालों पर दोपहर से शाम तक चलते रहते हैं और यही चर्चाएं सूचना और सोच के आदान-प्रदान का श्रोत बनती हैं, सामुदायिक रेडियो का महत्त्व बढ़ जाता है.
सामुदायिक रेडियो संचार का ऐसा माध्यम है जिसमे श्रोता और वक्ता दोनों उसी समुदाय से होते हैं. श्रोता-वक्ता की यह निकटता समुदाय विशेष के विकास की प्रक्रिया आसान बना देती है. आशीष की दोनों किताबें जर्मनी के लैम्बर्ट ऐकडेमिक पब्लिशिंग से आयीं हैं और इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं.
(लेखक परिचयः आशीष सिंह उत्तर प्रदेश के राय बरेली के रहने वाले हैं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गोपाल सरस्वती विद्या मंदिर से करने के बाद पत्रकारिता में स्नातक किया। इसके बाद सोशल साइंसेज में परास्नातक की पढाई टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई और यूरोप से पूरी की।)
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