स्कूल लायब्रेरीः किताबों से बच्चों का काबिल-ए-तारीफ प्यार
आज बच्चों की ख़ुशी नई किताबें देखकर अपने चरम पर थी। किताबों को हैरत से निहारती उनकी आंखो की चमक, चेहरे पर पल-पल बदलते भावों की मौजूदगी, किताब के रंगों, शीर्षक और तस्वीरों के आधार पर फटाफट किताबें चुनते हुए बच्चों को देखना अद्भुत था।
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विद्यालय के एक शिक्षक बच्चों को पुस्तकालय से किताबें दे रहे थे। किताबें देने के लिए एक तरीका अपनाया गया और बच्चों की कक्षा के अनुरूप किताबों को चुना गया। इसमें कक्षा के भाषा के स्तर और रुचि को देखते हुए कहानी, कविता के साथ-साथ रंग और तस्वीरों वाली किताबों का उचित समावेश किया गया।
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बच्चों की बाल सुलभ जिज्ञासा उनको किताबों की तरफ सहज आकर्षित कर लेती है। किताबों के साथ उनका संवाद देखने लायक होता है। वे किताबों से तेज़-तेज़ बोलते हुए बातें करते हुए दो-तीन किताबों की तुलना करते हैं और आख़िर में एक किताब पसंद करके कक्षा के अध्यापक के सामने रख देते हैं कि मुझे तो यही किताब पसंद है। इसके बाद जब किताब उनके नाम से जारी होकर उनके हाथ में आ गई तो वे ख़ुशी से झूमते हुए बाकी सारे बच्चों को अपनी इस उपलब्धि के बार में बताते हैं कि देखो मुझे ये किताब मिली है। तुम्हें कौन सी किताब मिली?
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कक्षा आठवीं के 27 बच्चे। एक बार कहानी और कविताओं की किताब पढ़ने के बाद उनको वापस जमा करवा चुके हैं। दोबारा किताबें पढ़ने का उत्साह किताबों के प्रति उनके प्यार और लगाव की एक अलग कहानी कहता है। यह दृश्य बताता है कि अगर बच्चों को ख़ुद से कोशिश करने के लिए प्रेरित किया जाए तो वे किसी भी काम को ज़्यादा जिम्मेदारी और तल्लीनता के साथ करते हैं। इसी तरीके से किताबें पढ़ने का काम एकाग्रता और रुचि की माँग करता है। अगर बच्चे ख़ुद से किताबों का चयन करते हैं तो उसको पढ़ते भी हैं। यह जानकारी बच्चों से होने वाली बातचीत के बाद मिली। कुछ बच्चों ने पिछली बार इश्यू कराई गई किताब की कहानी के बारे में भी बताया और यह भी बताया कि उस किताब में उनको सबसे ज़्यादा क्या पसंद आया?
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आगे के चार दिन स्कूल बंद रहने वाले थे। इसलिए आज बच्चों को उनकी एक बार फिर से मनपसंद किताबें चुनने का मौका दिया गया था ताकि उनको घर पर किताबें पढ़ने का पर्याप्त समय मिल जाएगा। जब बच्चों से कक्षा में पूछा गया कि कितने लोग घर पर किताबें पढ़ने के लिए ले जाना चाहते हैं? तो जवाब में सबकी तरफ़ से हाँ थी। जो बच्चे कह रहे थे कि हम सबको किताबें पढ़ने के लिए ले जानी हैं। मैंनें उनके कक्षा अध्यापक से बात की और उन्होंने भी कहा कि बच्चों को किताबें तो देनी ही चाहिए। किताबों की रैक से 30-35 किताबें छाँटी गईं और कक्षा में टेबल पर रखकर किताबें देने के लिए एक-एक छात्र-छात्रा को बुलाना शुरु किया।
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सभी छात्रों को टेबल पर बिखरी किताबों के बीच से अपने-अपने पसंद की किताबें छांटने की पूरी छूट थी। उन्होनें अपने पसंद की किताबें उठाईं। उस दौरान वे तस्वीरों, रंगों, किताब के शीर्षक और नाम के प्रति अपनी पसंद-नापसंद जाहिर कर रहे थे। कुछ नामों के प्रति उनका आकर्षण उनके चेहरों के भावों में सहज ही दिखाई पड़ रहा था..जैसे दोस्ती, मैं सबसे खूबसूरत हूं, रंग बिरंगे झंडे इत्यादि। एक-एक करके लगभग सारे बच्चों नें विना शिकायत के मनपसंद किताबें लीं। उसको अपने सहपाठियों के साथ साझा किया। अपनी पसंद पर ख़ुद की तारीफ भी कर रहे थे कि देखो मुझे कैसी किताब मिली है ? मैनें कैसी किताब पसंद की है? मुझे तो सबसे बेहतर किताब मिली है।
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ऐसी प्रतिक्रियाओं के बीच आखिर के पांच-एक बच्चे बचे रह गए। जिनका कहना था कि सारे लोग तो अच्छी किताबें लेते गए। अब वे बची-खुची किताब क्यों लें? इससे तो बेहतर है कि वे किताबें ही न लें। बच्चों के मन के भावनाओं को समझते हुए मैनें कहा कि मन छोटा करने की जरूरत नहीं है। अपने पुस्तकालय में किताबों की कमी भी नहीं है। आप पुस्तकालय की आलमारी से अपने पसंद की किताबें चुनकर लाइए और उन्हें नाम लिखवाकर लेते जाइए। किताबें लेने से मना करते-करते उन्होनें किताबें चुनना पसंद किया। पुस्तकालय की आलमारी से पसंद की किताबें छांटकर लाए और अपना नाम लिखवाकर किताब ले गए। इस पूरी प्रक्रिया को देखने के दौरान बच्चों की निर्णय प्रक्रिया, उनकी रुचि और संवेदनशीलता को समझने का मौका मिला। इसके साथ-साथ बच्चों के साथ बातें करने और उनकी नाराजगी दूर करने और उनको ख़ुशी के साथ किताबों से दोस्ती करते देखने का मौका भी मिला। बच्चों का किताबों का प्रति यह प्यार तो काबिल-ए-तारीफ़ है।
Source: https://educationmirror.org/2012/11/24/बच्चों-का-काबिल-ए-तारीफ-प्/
इस आलेख को प्रकाशित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। आपका यह प्रयास देखकर अच्छा लगा कि आप शिक्षा क्षेत्र के अनुभवों को विस्तार देने का प्रयास कर रहे हैं। writer @ https://educationmirror.org/
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