अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस क्यों मनाते हैं?
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस वैश्विक स्तर पर व्यक्तियों, समुदायों और विभिन्न समाजों के लिए साक्षरता के महत्व को रेखांकित करने के लिए मनाया जाता है। यूनेस्को की तरफ से इसकी शुरुआत 8 सितंबर का दिन चुना गया। यह निर्णय 17 नवंबर 1965 को किया था, इसलिए इस दिन का भी ऐतिहासिक महत्व है। हर साल यूनेस्को की तरफ से 8 सितंबर को वैश्विक साक्षरता की स्थिति को लेकर रिपोर्ट जारी की जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (इंटरनैशनल लिट्रेसी डे) का मुख्य समारोह यूनेस्को के मुख्यालय फ़्रांस की राजधानी पेरिस में मनाया जाएगा। इस साल की थीम्स हैं 21वीं सदी के लिए शिक्षा और संपूर्ण साक्षरता। यूनेस्को का मानना है कि शिक्षा सबके लिए एक मानवाधिकार है, जो पूरी ज़िंदगी काम आती है। इसकी उपलब्धता और गुणवत्ता दोनों का तालमेल होना चाहिए। यह संयुक्त राष्ट्र की इकलौती संस्था है जो शिक्षा के सभी आयामों पर नजर रखती है। 2030 के फ्रेमवर्क फॉर एक्शन को यूनेस्को अपना नेतृत्व दे रहा है।
ये कैसा ‘साक्षरता भारत’ है
भारत में साक्षर भारत मिशन के नाम से कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य साक्षर लोगों की संख्या में वृद्धि करना है। इसके लिए उम्र में बड़े यानि प्रौढ़ लोगों को साक्षरता का बेहद बुनियादी प्रशिक्षण देकर, परीक्षाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसमें पास होने वाली स्थिति में उनको साक्षर होने का प्रमाण पत्र दिया जाता है।
ज़मीनी स्तर पर ऐसे कार्यक्रम किस तरह संचालित हो रहे हैं? परीक्षाएं कैसे हो रही है? क्या परीक्षाओं में नकल होती है। क्या हस्ताक्षर करने वाली साक्षरता के बहाने साक्षरता के आँकड़ों को बढ़ाने मात्र के लिए ऐसे अभियान चलाए जा रहे हैं, ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब ज़मीनी अनुभवों में बार-बार सामने आता है।
सिर्फ आँकड़ों के उद्देश्य वाली और हस्ताक्षर करने वाली साक्षरता लोगों के लिए बहुत ज्यादा काम की नहीं है। उनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर वाली कहावत ही लागू होगी, क्योंकि ऐसी साक्षरता के अभियानों से वे केवल अपने नाम के काले अक्षरों को सफेद करना यानि पढ़ना (या सटीक शब्दों में डिकोड करना) सीख पाएंगे।
साक्षरता का अर्थ
साक्षरता का अर्थ केवल हस्ताक्षर कर पाने की योग्यता भर नहीं है। जैसा कि प्रौढ़ साक्षरता के विभिन्न कार्यक्रमों में जोर देकर बार-बार बताया जाता है। इन अभियानों के चलते ‘साक्षरता’ का मतलब काफी सीमित अर्थों में लिया जाता है। जबकि वास्तविक अर्थों में देखें तो साक्षरता का अर्थ है कि व्यक्ति किसी सामग्री को अपनी भाषा में पढ़कर समझ सके। उसका आनंद ले सके।
इसके साथ ही अपनी रोज़मर्रा की जरूरतों के लिए अपनी इस क्षमता का इस्तेमाल कर सके। साक्षरता की इसी कड़ी में ‘अर्ली लिट्रेसी’ या प्रारंभिक साक्षरता की अवधारणा आई। इसके बारे में बताते हुए प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार अपने एक लेख में कहते हैं, “अर्ली लिट्रेसी का अर्थ है कि बच्चों के स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया में ही उसे पढ़ना-लिखना सिखाना जरूरी है क्योंकि पढ़ना एक बुनियादी कौशल है।“
साक्षरता का महत्व
किसी भाषा में लिखी सामग्री को समझकर पढ़ने का कौशल जीवन के हर क्षेत्र में काम आता है। अगर किसी इंसान को पढ़ना नहीं आता है तो उसे किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। उसे हर पढ़ा-लिखा आदमी आम शब्दावली में साहब नज़र आता है। साक्षरता या पढ़ने का कौशल एक आत्मविश्वास देता है, चीज़ों को समझने का एक जरिया।
किसी लिखी हुई सामग्री के बारे में सोचने और उसका विश्लेषण करने का। इसलिए साक्षरता को केवल अक्षरों तक सीमित नहीं करना चाहिए। केवल नाम लिख लेना भर पर्याप्त नहीं है। नाम लिखना-पढ़ना तो बच्चों को दो-तीन महीने में सिखाया जा सकता है, इससे वे अपना और दूसरे का नाम लिख-पढ़ लेंगे। मगर सिर्फ नाम में क्या रखा है, वाली बात सामने होगी। असली मुद्दा तो नाम से आगे जाने का है ताकि इंसान दुनिया में अपने अस्तित्व को सम्मान के साथ जी पाए।
Source:https://educationmirror.org/2016/09/07/why-international-literacy-day-is-celibrated-all-over-the-world/
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